गांधी जी और चुनाव

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    गांधी जी और चुनाव                                                                          

कल रात पेट पूजा करने के बाद खटिया पर लेटे-लेटे मैं यहीं विचार कर रहा था कि आधुनिक भारतीय नेता भी कितने लीचड़ है। ये चुनाव के वक्त कितनी लच्छेदार बातें करते हैं और चुनाव जीतने के बाद क्षेत्र से ऐसे गायब हो जाते है जैसे गधे के सिर से सींग। यहीं सोंचते विचारते कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला। आजकल तो खाते पीते, सोते जागते हर समय चुनावी महाभारत मेरे दिमाग में गतिमान है। मेरी तरफ देखते हुए वे बोले ऐ भारतीय नवयुवक मुझे बताओ कि आजकल भारतवर्ष में क्या चल रहा है।

                                       मैने भी बापू को प्रणाम करते हुए कहा, हे महात्मा जिस सुखद और समृद्ध भारत की  खातिर आपने अपने जीवन का बलिदान का कर दिया उसी भारत में आजकल चुनावी महाभारत चल रहा है।

बापू बोले ‘बेटे विस्तार से बताओ चुनाव की क्या व्यवस्था है भारत में  ?’

मैंने व्यवहारिक व्यवस्था से बापूजी को अवगत कराते कहा चुनाव के दौरान अक्सर भारतीयों की नींद हराम हो जाती है। चुनाव व नींद का रफ्फूचक्कर हो जाना एक दुसरे के पर्यायवाची है। नोट छापने की होड़ में प्रचारकों की नींद हराम, वोट छापने व बूथ कब्जाने की होड़ में बदमाशों की नींद हराम शांतिपूर्ण व निष्पक्ष चुनाव संपंन करवाने में चुनाव आयोग व अर्धसैनिक बलों की नींद हराम, टैंट वालों की नींद हराम, दूरदर्शन वालों की नींद हराम, लाउड-स्पीकर वालों की नींद हराम, प्रदर्शन व जनसभा करने वालों की नींद हराम। एक लंबी चौडी लिस्ट बन सकती है चुनाव के वक्त अनिद्राग्रस्त लोगों की। भारतीय लोकतंत्र के महांकुभ में सबसे ज्यादा नींद हराम होती है चुनाव लड़ने वाले नेताओं की। हार-जीत की चिंता बेचारों को हरपल सताती रहती है।

 बापू उत्सुकता से बोलते है और क्या होता है चुनाव अवधि में ?

  मैंने कहा भारतीय नेता जिसकी मुख्य विशेषता है कि वह जनता को कुछ देता नहीं है बल्कि लेता ही है। चुनावी दौर में वह जनता को झूठे आश्वासन और कोरे वादे छप्पर फाड़कर देता है। हां आजकल तो नेता पार्टीयां ऐसे बदलते है मानों कपडे बदल रहे हो। आपकी कांग्रेस सोवियत संघ की भांति कई खण्डों में खण्डित हो गई है।

इन दिनों एक दुसरे की कट्टर विरोधी पार्टीयां भी गठबंधन कर रही हैं। कल तक एक दुसरे को भ्रष्ट कहने वाले नेतागण आज गलबहिंया डाले घूम रहे हैं।

 अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मैंने कहां बापू आम चुनाव के दिनों में आपकी खादी व नेहरू जी की टोपी की रिर्कोड़ तोड़ सेल होती है। ईश्वर अल्लाह को न मानने वाले नेतागण भी मंदिर, मस्जिद, और साधू फकीरों से आर्शीवाद लेने के लिए दौडा-भागी करते है। विचार गोष्टियों व पत्रकार वार्ताओं में समाजवाद, उदारवाद, धर्मनिरपेक्षतावाद आदि वादों की दुहाई देने वाले अधिकांश नेतागण अपने चुनाव क्षेत्र में जातिवाद का सहारा लेते हैं। सबकों शिक्षा व रोजगार के लुभावने वायदों के बल पर युवा मतदाताओं को सपनों की एक ऐसी दुनिया में ले जाया जाता है जहां मुंगेरी लाल के सपने भी फिके पड़ जाते हैं।

 महंगाई कम करने, रोटी कपड़ा और मकान देने के सब्जबाग दिखाकर ये नेतागण जनता को उल्लू बनाते हैं। प. नेहरू ने कहा था ‘आराम हराम है, अत: नेहरू जी की बात का अक्षरश अनुशरण करते हुए भारतीय नेता चुनाव पीरियड में कतई आराम नहीं करते और हो हल्ला कर जनता की नींद हराम करते हैं।

 बापू मेरी बात सुनके बहुत दुखी हुए और बोले क्या कोई सिद्धांत वगैरह भी हैं भारत में चुनाव के दौरान या नहीं ?

मैने कहा आपके जाने बाद राजेन्द्र बाबू व डा. अम्बेडकर आदि की समिति ने संविधान के अन्तर्गत कई ठोस सिदांत बनाये हैं। संविधान की धारा में निर्वाचन आयोग की शक्तियों व कार्य प्रणाली का वर्णन किया गया है मगर भारत के भ्रष्ट नेताओं के नियम कानून को ठेंगा दिखाकर निर्वाचन आयोग की शक्तियों व कार्यप्रणाली का वर्णन किया गया है मगर भारत के भ्रष्ट नेताओं के नियम कानून को ठेगा दिखाकर निर्वाचन आयोग को वाद विवाद का स्थल बना दिया है। अब लोकसभा व राज्यों की विधानसभा मारपीट के अखाड़ों में तब्दील होने लगी हैं।

बापू ने दुखी स्वर में कहा ओह मेरे आदर्श भारत का स्वप्न तो टूट गया। मैं कुछ बोल पाता कि लाउडस्पीकर की तीव्र ध्वनि में यह आवाज गूंज रही थी कि हमारे उम्मीदवार को वोट देकर विजयी बनायें। बापू से मैं और बतियाता कि इतने में मेरी नींद खुल गई और सपना टूट गया।    

प्रदीप कुमार वेदवाल की पुस्तक ‘प्यार ही प्यार’ से साभार 

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