क्या दु:ख हमारे सुखों को अौर रंगीन नहीं बना देते?

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कुछ लोगों का कहना है कि इस दुनिया के दु:ख ही हैं जो हमारे सुखों में रंग भरते हैं नहीं तो यदि हमेशा सुख ही होते तो सभी समय का सुख भी बहुत ही बोरिंग हो जाता ।
क्या यह वास्तव में सत्य है? क्या वास्तव में हममें से कोई भी जीवन में थोड़े समय के लिए भी दु:खी होना चाहता है?

यदि किसी के कारखाने में अाग लग जाये तो क्या वह उसे बचाने का प्रयास करेगा या उसे जलते रहने के लिए छोड़ देगा? वह उसे बचाने का प्रयास करेगा अौर बीमे का धन लेने का भी पूरा प्रयास करेगा एवं साथ ही साथ भगवान् को धन्यवाद देगा कि उसके बाकी के कारखाने सही सलामत हैं ।

क्या कोई विद्यार्थी जानबूझ कर किसी एक विषय में फेल होना चाहेगा जिससे कि वह अन्य विषयों में सफल होने का सुख अौर अधिक अनुभव कर सके?

क्या अाप में से कोई भी अच्छे स्वास्थ्य की कीमत समझने के लिए बीमार होकर दु:खी होना पसंद करेंगे?

सच तो यह है कि दु:ख दु:ख ही हैं अौर सुख सुख हैं । बड़ी-बड़ी बातें करना एक बात है किन्तु वास्तविकता तो यही है कि कोई भी अपने जीवन में किसी भी प्रकार का दु:ख नहीं चाहता ।
हम सभी एेसे सुखों की खोज में हैं जिनका कभी भी अन्त न हो, किन्तु जब उस प्रकार का सुख हमें इस दुनिया में नहीं मिलता तो हम अपने मन को किसी न किसी प्रकार से समझाने के लिए यही सब बाते करते हैं कि सुखों के अानंद के लिए दु:खों का होना अावश्यक है ।

परन्तु बुद्धिमत्ता तो इसी में है कि हम यह समझे कि इस भौतिक जगत् में उस प्रकार का निरन्तर सुख जिसमें किसी भी प्रकार की रुकावट या दु:ख का मिश्रण न हो, उपलब्ध ही नहीं है अौर यदि हम उस प्रकार के सुख की अभिलाषा करते हैं तो हमें एेसे सुख को प्राप्त करने वाला सही स्थान खोजना होगा ।

अौर अच्छी खबर यह है कि एेसा एक स्थान है जिसे वैकुण्ठ कहा जाता है, जहाँ सभी निरन्तर रूप से सुख का अनुभव करते हैं अौर वहाँ हमें अपने मन को समझाने के लिए एेसी मनगढ़ंत थ्योरी बनाने की कोई अावश्यकता नहीं है कि दु:ख हमारे सुखों को अौर रंगीन बना देते हैं ।

हरे कृष्ण ।

प्रेषक : ISKCON Desire Tree – हिंदी

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